आलाप
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हम जानते है कि राग स्वरों का मिश्रित रूप होता है
राग को गाते वक्त बंदिश के बीच में इन्ही स्वरों को एक धीमे व् प्रदर्शित रूप में गाने को आलाप लेना कहते है
आलाप में अधिकतर स्वरों को आ के रूप में बोलते है
अर्थात जब गाते वक्त आलाप करते है तो मस्तिष्क में स्वर चलते है पर मुख से उच्चारण आ की ध्वनि का होता है
आलाप में राग का भाव बहुत सप्ष्ट रूप से प्रदर्शित होता है
ताल में सम का ध्यान रख के लिए गए आलाप को तालबद्ध आलाप कहते है
आलाप की प्रकृति गंभीर होती है राग की शुरुआत में भी इनका प्रयोग स्वरुप में किया जाता है
आलाप करने को संगीत में आलपी कहते है व् इसके भी कई प्रकार होते है
आलाप ध्रुपद, व् ख्याल गायकी में अधिक प्रयोग होते है
आलाप में मींड, खटका, गमक, व् मुर्की का प्रयोग किया जाता है
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