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खटका व् मुर्की

खटका व् मुर्की

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खटका व् मुर्की तेज़ी से अर्थात द्रुत लय में गाये जाते है 

 

खटके में चार या चार से अधिक स्वरों को एक गोलाई में प्रदर्शित किया जाता है  

स्पष्ट रूप में कहा जाए तो गायकर गाने के बिच में तेज़ी से एक छोटे से अंतराल में गले को हिलाते है उसे खटका कहता है

खटके के कुछ रूप इस प्रकार है – रेसनीसा, सरेनीसा, निसारेसा, 

खटके में स्वरों को नहीं बल्कि उनके स्थान पर शब्द, हे, आ, ई, हो, का प्रयोग किया जाता है

मुर्की में खटके की भांति केवल तीन ही स्वरों का प्रयोग किया जाता है

मुर्की के कुछ उदाहरण इस प्रकार है रेनिसा, धमप, 

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मुर्की और खटका तेज़ी से गयी जाते वाली तकनीके है यह तीनताल, व् कहरवा, में अधिक प्रयोग किये जाते है

मुर्की व् खटका जितना सुनने में सरल व् छोटा प्रतीत होता है उतना सरल नहीं होता

गायक इनका अभ्यास कई लम्बी अवधि तक हज़ारो बार करते है तब जा के यह गले पर सज पाती है 

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