गमक और अवयव



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गमक से अभिप्राय गायकी की उस तकनीक से है जिसमे गायकर के गले से नहीं बल्कि उसकी नाभि के ज़ोर से स्वर प्रदर्शित होते है
गमक की प्रकृति बड़ी गंभीर होती है सुनने में यह बड़ी भरी आवाज़ मालूम होती है
गमक उतपन्न नाभि से होती है परन्तु उसे उसकी असली आवाज़ व् भार सीना या कहे की फेफड़े देते है
गमक का उपयोग तानो में अधिक किया जाता है
जब गमक सुनाई पड़ती है तो ऐसा महसूस होता है की जैसे की कोई बादल गरज रहे हो या फिर बिजली कड़कड़ा रही हो
गमक में कम्पन व् भार ( बेस ) अधिक होता है
गमक प्राचीन काल से ही काफी प्रचलित है जिसका प्रयोग आज आधुनिक काल में भी किया जाता है
गमक का अभ्यास वर्षो तक करना उग में केवल फढ़ता है ताकि गला उस प्रकार की आवाज़ या आंदोलन को निकाल सके
गायकी में आज प्रमुख दो भाग रह गए है स्थाई, व् अंतरा, प्राचीन काल में यह चार भागो में होती थी
गायकी के इन्ही भागो को अवयव कहा जाता है
आधुनिक युग में केवल ध्रुपद गायन में सारे अवयवों का प्रयोग किया जाता है
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