तराना
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तराना से अभिप्राय किसी ख़ास गायकी से नहीं बल्कि बे मतलब के शब्दो से है
विद्वानों का मत है की एक विदेशी प्रतियोगिया में एक कला कार को वह की भाषा नहीं आने के कारण उस कलाकार ने वही इन शब्दो का आविष्कार अपनी तेज़ ताल में गायन प्रस्तुति के लिए किया था
जिसमे निम्न शब्द इस प्रकार है
नाम, तोम, तनन, ना, दिर, धीर, दानी, तदानी, अली, देना, देरऐना, यलली, इत्यादि है
तराना सभी रागो व् ख्याल गायकी की सभी तालो में गाया जाता है
तराने की गति को मध्य लय से बढ़ाते हुए द्रुत लय में समाप्त करते है
तराना गाने से वाणी में सफाई व् द्रुत लय में गाने के शब्दो का उच्चारण भी स्पस्ट हो जाता है
तराने के शब्द चाहे बे अर्थ हो लेकिन इसके शब्दो द्वारा राग में भाव बहुत अच्छा प्रदर्शित होता है
तराना हमेशा छोटे व् बड़े ख्याल के बाद गाया जाता है
तराने के लिए संगीतज्ञों व् विद्यार्थियों में एक अलग ही उत्सुकता स्पष्ट दिखाई देती है
यह लय को बढ़ाने के साथ साथ कलाकारों के जोश को भी बड़ा देता है
तराने की संगीत में अपनी ही खूबसूरती है जो की संगीत में बहुमूल्य है
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