धमार गायन
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यह एक प्राचीन गायन शैली है
यह धमार ताल में गाया जाता है इस ताल की अपनी अलग ही पहचान है
धमार गायन भगवान श्री कृष्ण व् राधा की रास लीला को प्रदर्शित करता है
धमार गायन को कुछ लोग होरी भी कहते है क्योकि भारतीय पर्व होली के भजन व् रस इसी में गाये जाते है
प्राचीन समय में इसकी शुरुआत नोम तोम की अलाप से करते थे व् इसके हर चरण का ध्यान रख कर इसे गाय जाता था
वर्तमान समय में यह केवल होली के भजन व् रास तक ही सिमित रह गया है
धमार गायन के अत्यधिक शब्द ब्रजभाषा में ही मिलते है
धमार में ताल बजाने के लिए पखावच के प्रयोग की परम्परा है परन्तु आज यह तबले पर भी बजाया जाता है
धमार की प्रकृति रस भरी होती है इसे सुन क्र लोगो को एक अलग ही सुखद अनुभव प्राप्त होता है
इसकी ताल इतनी खूबसूरत होती है की लोग भक्ति भाव में इसे सुनकर नृत्य भी करते है
वर्तमान समय में ( आज बिराज में होली रे रसिया ) गीत काफी प्रचलित है जो धमार गायकी व् धमार ताल में गाय जाता है
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