मींड व् कण
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मींड व् कण गायकी में प्रयोग किये जाने वाली दो अद्भुत तकनीके है
जिसके प्रयोग से गायक अपनी गायकी को सजाते है
सामान्यत हम स्वरों को अलग अलग गाते है परन्तु जब हम आलाप या शब्द गाते है तो मींड का प्रयोग करते है
एक स्वर से दूसरे स्वर तक आवाज़ को बिना तोड़े गाने को मींड कहते है
मींड लेते वक्त बिच के स्वरों को इस प्रकार स्पर्श कर के गाया जाता है की उनकी आवाज़ अलग अलग सुनाई न पड़े
मींड दिखने के लिए स्वरों पर उलटे चंद्राकर का निशान बनाया जाता है
गाते बजाते समय स्वर के आगे व् पीछे के स्वर को चुना व् गायकी में उनका स्पर्श दिखने को कण कहते है
कण का अर्थ होता है तिनका यानि कण का प्रयोग बहुत हल्के से व् बहुत कम किया जाता है
कण को स्पर्श स्वर भी कहते है
कण को लिखने की विधि में स्वर के ऊपर कण स्वर को लिखा जाता है
मींड व् कण खूबसूरती से गले का भाव प्रदर्शित करते है
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