स्वर-साधना
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सभी गुरु अपने शिष्यों को कहते है की रियाज़ अधिक करना चाहिए रियाज़ करने से गाने में चमक आती है रियाज़ उर्दू भाषा का शब्द है
हिंदी में रियाज़ को अभ्यास कहते है
गले में स्वरों को अभ्यास कर कर के बैठाना स्वर साधना कहलाता है
आवाज़ का सुरीला होना कुछ भगवान की देन है परन्तु संगीत में गाते वक्त गले को ऊपर निचे दाए बाये ले जाना होता है यह अभ्यास का काम है
अभ्यास से स्वाश क्रिया भी मज़बूत होती है व् फेफड़ो की भी कसरत होती है जिससे गायक उत्तम प्रदर्शन करता है
स्वाश क्रिया जिसकी बेहतर होती है उसे कभी दमा नहीं होता
स्वरों को साधने के लिए उन्हें बड़े ध्यान से सुनना व् समझना पड़ता है
स्वरों को साधते हुए गले पर ज़ोर पड़ता है जिससे गले में एक स्थिरता व् सुरीलापन आ जाता है
स्वरों को साधना बड़ा संयम का कार्य है
स्वरों को साधने के लिए एक मर्यादा का पालन करना आवश्यक है जिससे कंठ में मधुरता जल्दी आती है
स्वर को साधते हुए जितना ज़ोर गले पर पड़ता है उससे कई अधिक दिमाग पर पड़ता है
स्वरों को साधते हुए हमें गले पर ताकत से ज़ोर नहीं लगाना चाहये नहीं तो गला खराब भी हो सकता है बल्कि एक निरंतर अभ्यास बनाना चाहिए व् उसका पालन करना चाहिए
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